Tuesday, January 7, 2020

वर्णाश्रम- धर्म



वर्णाश्रम, विज्ञान( रज- इलेक्ट्रॉन सत्व- प्रोटान, तम ,न्यूट्रॉन का संवितीकरण )आधारित ईश्वरी व्यवस्था है,( गीता 4.13 )।

जाति का आधार विज्ञान विहीन है ,किंतु नेताओं की रोजी रोटी का साधन है।

एससी ,एसटी तथा ओबीसी आदि जाति वर्ग, स्वतंत्रता के बाद नेताओं की देन है, उसके पहले यह नहीं थे।

जीव की कर्मों में रुझान जन्मजात मानसिक -स्वभाव (वर्ण धर्म )के आधार पर होती है और कर्तव्यों का निर्धारण शक्ति-सामर्थ्य( आश्रम धर्म) के अनुरूप बदलता रहता है ।

कलयुग के आते-आते सामाजिक दशा विकृत हो जाती है,और वर्णाश्रम धर्म का अनादर होने से ,मानव जीवन दुखों से भर जाता है।


यथा:-
वर्ण धर्म नहिं आश्रम चारी ।
श्रुति विरोध रत सब नर नारी।।
मानस,7.98.1।


यदि आप के जीवन का लक्ष्य भगवत्प्राप्ति है ,तो आज भी अपने स्वभाव, सामर्थ, परिस्थिति तथा युग को ध्यान में रखकर ,शास्त्र के अनुसार वर्ण -आश्रम के अनुरूप अपने आचार का निर्धारण कर सकते हैं, जीवन का परम लक्ष्य मिल जाएगा।

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