वही परम सत्य सबका अधिष्ठान और परंब्रह्म है ।
कार्य करते समय उसकी स्मृति बनी रहने से ,हमारा ज्ञान ,हमारी शक्ति व क्रिया ठीक रहती है ।
उसकी प्रसन्नता के लिए स्वधर्म निर्धारित कर्म करना ही ,कर्म योग है ।
उस परम सत्य की शक्ति जिन मुख्य केंद्रों से ,सृष्टि में वितरित हो रही है, उन्हें पंचदेव - श्री गणेश जी ,सूर्य भगवान, विष्णु जी ,शिव जी तथा दुर्गा जी कहते हैं ।
यथा अवसर इनका यजन कर ,कृतज्ञता प्रकट करना ,हमारा कर्तव्य है ।
यदि कोई नास्तिक है ,यज्ञ भावना रहित है ,तो भी उसकी हत्या /आतंकित करने का विधान हिंदू धर्म में नहीं है, बशर्ते वह आतातायी ना हो।
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