(See post from April 2020 for more details on Mukti Marg)
आधारशिला- अपौरूषेय स्वरूप। सारी सृष्टि, एक शक्ति संपन्न परम सत्य पर अधिष्ठित और उसी से संचालित है। उस व्यवस्था का अपौरूषेय ज्ञान वेद में है। उसकी रक्षा का जो भार हिंदुओं के सिर पर है, उसका निर्वाह करना चाहिए:-
अंतरंग स्वरूप ।कर्तव्य और अकर्तव्य निर्धारण में,शास्त्र ही प्रमाण है।गीता 16.24 ।अस्तु सत्संग व सदग्रंथों का पठन-पाठन चालू रखना, हम सब का कर्तव्य है:-
वहिरंग स्वरूप। लंबे समय की परतंत्रता एवं बाद में वैदिक धर्म विरोधी शासन तंत्र के कारण, हिंदूधर्म कुरूप हो गया है। अस्तित्व रक्षा के लिए राजनीतिक मोर्चे पर संगठित रहकर,वाह्यरूप को भी सजाना, संवारना है:-
लौकिक स्वरूप, हिंदू-धर्म मंदिर, का चौथा स्तंभ है।हिंदू धर्म अनुयाई अपने परम लक्ष्य( स्वरूप स्थिति) पर दृढ़ रहते हुए, परिवर्तनशील दैवी प्रकृति को स्वीकार करता है:-
गुंबद रूपी यह पोस्ट रखने से, सनातन धर्म मंदिर तैयार हो जाता है। इसकी क्षत्रछाया में उपासना से भगवत प्राप्ति हो जाएगी:-
हिंदुओं को, संक्षेप में स्वधर्म से परिचय के लिए, यह मंदिर है।
जो इसमें वर्णित सदग्रंथों का स्वाध्याय,मनन व निदिद्ध्यासन करेगा, उसका कल्याण सुनिश्चित है:-
निष्कर्ष
No comments:
Post a Comment
Thank you for taking the time out to read this blog. If you liked it, share and subscribe.