हिंदू जीवन दर्शन में विषयों (शब्द ,स्पर्श ,रूप, रस, गंध) के मर्यादित सेवन द्वारा ,उनसे अनासक्त होकर, हृदयस्ध भगवान का अपरोक्ष करने का विधान है ।
मनीषियों ने विषयासक्त के नियंत्रण को कठिन माना है।
लेकिन अब तो आसुरी- वृत्ति विकास के लिए समलैंगिकता को कानूनी जामा पहनाकर मर्यादित कर दिया है।
पशुओं से लेकर देवताओं तक, प्रकृति में कहीं समलैंगिकता दिखाई नहीं पड़ती ।
ईश्वरी व्यवस्था, भारत के शासन तंत्र से शासित नहीं होती ।
समलैंगिकता को मानवता विकास मानने वालों को ,कैंसर जैसी सेक्सुअल बीमारियों से जूझने के लिए तैयार रहना चाहिए।
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