निसंदेह मन चंचल है और कठिनता से वश में होने वाला है (गीता 6. 35) ।
मन है क्या ?
विषयों से उद्वेलित चेतन की वृत्ति ही मन है ।वास्तव में सबिषय चेतन को ही मन कहते हैं ।यह एक अमूर्त पदार्थ है।मन नाम का कोई प्रथक तत्व नहीं है। जैसे ही हम विषय चिंतन करते हैं, तो मन उसी का आकार लेकर प्रकट हो जाता है ।अगर हमारा मन" कार" का चिंतन कर रहा है तो वह" कार" के रूप का हो जाएगा ।यदि हम अपनी पत्नी का चिंतन कर रहे हैं,तो वह पत्नी के रूप में मिलेगा। यदि हम पुत्र का चिंतन कर रहे होंगे,तो पुत्र के रूप में मिलेगा। मन के उपरोक्त स्वभाव में, उसको वश में करने का सूत्र छिपा है।आप अपना कोई इष्ट (श्री राम ,कृष्ण) चुन ले और उस के रूप में तन्मय हो जाए, तो मन भगवान के उसी रूप के आकार का हो जाएगा। भगवान के रूप के प्रभाव से उसका मल भस्म होगा और वह शुद्ध हो जाएगा। इष्ट का चित्र सामने रखकर उसके रूप अथवा स्वरूप का निरूपण करते हुए, नाम जपने का अभ्यास मन नियंत्रण का सरल उपाय है।
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