Saturday, March 9, 2019

साधन- पंथ का विज्ञान




कर्म योग, ज्ञान योग तथा भक्तियोग इन तीनों में से प्रत्येक के द्वारा चित भी शुद्ध होता है और ज्ञान भी होता है इनमें से किसी एक की पूर्णता होने पर, तीनों की पूर्णता हो जाती है | कर्तव्य परायणता से कर्मयोग, असंगतता से ज्ञान योग एवं समर्पण से भक्तियोग की सिद्धि होती है | योग ज्ञान तथा प्रेम में विभाजन संभव नहीं है |

हमारा शरीर 3 शरीरों का संवित है 

  • स्थूल
  • सूक्ष्म और 
  • कारण। 
 इन तीनों को दूसरों की सेवा में लगा दें, यह कर्म योग है ।स्वयं उनसे असंग होकर,अपने स्वरुप में स्थित हो जाएं,यह ज्ञान योग है और स्वयं इनके सहित भगवान को समर्पित हो जाएं, यह भक्ति योग है। 

यह जिज्ञासा हो सकती है कि पाप करने की स्फुरना कहां से आती है? 

गीता 2.62,63 के अनुसार विषय चिंतन से क्रमशः ➡विषयासक्ति ➡कामना ➡क्रोध ➡मूढ भाव ➡स्मृतिभ्रम➡बुद्धिनाश➡ स्वरूप च्युत। 

अतः पाप द्वारा पतन के लिए विषयासक्ति प्रधान कारण है ,ईश्वर नहीं अतः उसे त्यागना है। 

साधक को अहंता ममता से बचना होगा l तीनो योग मार्गो में व्यक्तिगत अहंकार को मिटाना ही होता है। कर्म योग सिद्ध होने पर अहंकार शुद्ध हो जाता है अर्थात देहात्म तदात्म्य हट जाने से कर्तृत्व भाव और भोगतृत्व भाव मिट जाता है ,ज्ञानयोग में अहंकार ब्रह्म के साथ मिल जाता है ,भक्ति योग में अहंकार भगवान को अर्पित हो जाता है। अहम को शुद्ध होने मिटाने और अर्पित होने का परिणाम एक ही है - तत्वबोध। 


मार्ग का चुनाव


ज्ञानयोग-अध्यात्म क्षेत्र में अपने को जानना ही सबसे कठिन,किंतु अनिवार्य आवश्यकता है। अपने को जाने बिना,मान्यता के आधार पर, कुछ स्वीकार करते रहने से,मिथ्या अभिमान में जीव बंधता रहता है।अपने को ब्रह्म भी मान लिया जाए, तो सत्य होते हुए भी, वह मिथ्या अभिमान ही होगा।

कर्मयोग की साधना तुलनात्मक दृष्टि से सरल है ।प्राप्त परिस्थितियों के अनुसार,शास्त्र निर्धारित स्वकर्तव्य को पूरी क्षमता और कुशलता से करना है और किसी से कुछ अपेक्षा नहीं करनी है।इतने से ही कर्मयोग सिद्ध हो जाएगा और जीवन आनंदमय हो उठेगा।

भक्ति योग अलौकिक साधना है, जो भगवान के बल पर संपादित होती है।एक बार भगवान को अपना तथा अपने को भगवान को मानकर,सर्वभावेन भगवान को समर्पित हो जाए,तो भक्तियोग प्रारंभ हो जाता है। सर्वरूप विराट भगवान की सेवा चलते रहने पर,भगवान की कृपा से अपरोक्षानुभूति और परा भक्ति की प्राप्ति भी हो जाती है

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