Saturday, March 9, 2019

हिंदुओं ! स्वधर्म पहचानो।





हिंदुओं ! स्वधर्म पहचानो। 

जिस किसी के पीछे मत भागो। 


भगवान श्री कृष्ण ने गीता के मंत्र १५.१५ में अपना परिचय बताते हुए कहा है कि - सब वेदों से एक मात्र मैं ही जानने योग्य हूं' , परमात्मा को ही जानना है वह भी वेदों के आधार पर, मनमानी नहीं। आजकल जिस किसी को भगवान कहने का फैशन चल पड़ा है ।अधिकांश हिंदू अपने धर्म के स्वरूप को भूलते जा रहे हैं हैं। 


चारों वेद भारतीय धर्म ,संस्कृति और दर्शन आदि के प्राण रूप हैं ।यह अनादि ज्ञान के भंडार हैं। वेद में तीन कांड हैं, कर्मकांड, उपासना कांड और ज्ञान कांड ।मंत्रों की संख्या 1 लाख बताई जाती है, जिसमें 80 हजार मंत्र कर्मकांड के हैं, 16000 उपासना के और 4000 ज्ञान के हैं। ज्ञानकांड को ही वेदांत कहते हैं ,जिसकी आत्मा उपनिषदे हैं ।उपनिषद समूह ही भारतीय दर्शन का मूल स्रोत है। इनका मूल सिद्धांत ,अद्वयवाद यानी ब्रह्मवाद है। इसका भाव यह हुआ कि इस विश्व ब्रह्मांड के पीछे एक अद्वितीय, निर्विशेष तथा निरुपाधिक अखंड चैतन्यस्वरूप ब्रह्म तत्व ही विद्यमान है जो त्रिकाल परम सत्य वस्तु है ,यही वास्तविक ज्ञान है ।वेद प्रमाणित ग्रंथो जैसे श्री मदभागवत कथा श्री रामचरितमानस आदि से भी उसी ज्ञान का बोध सरलता से हो जाता है ।

          

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