सृष्टि में नाना प्रकार के शरीरधारी हैं, जैसे पेड़ -पौधे ,पशु-पक्षी पक्षी आदि । जीव को मानव देह तो साधना द्वारा भगवत प्राप्ति के लिए है- जैसा मानस में कहा है " साधन धाम मोक्ष कर द्वारा "। किसी अन्य प्रकार की देह द्वारा पूर्णता के पथ पर साधन द्वारा अग्रसर होना संभव नहीं है।
दैवी संपदा मुक्ति के लिए और आसुरी संपदा बंधन के लिए मानी गई है (गीता 16 • 5 )।
रजोगुण और तमोगुण की प्रधानता ही असुरी प्रकृति का आधार है और सत्वगुण की प्रधानता ही दैवी प्रकृति का हेतु है।अतः साधना का उद्देश्य साधक की आसुरी व्रत्तियों को समाप्त कर दैवीगुणो को प्रकाशित करना होता है अर्थात सत्व गुण की वृद्धि करना होता है । गुणों का बढ़ना और घटना 10 तत्वों पर निर्भर करता है। यथा भोजन ,शास्त्र ,जल, देश, काल ,कर्म ,जन्म ,ध्यान ,मंत्र और संस्कार। इनमें आहार मुख्य है।
आहार शुद्धौ सत्व शुद्धि (छा 0 उ0 7• 26 •2 )।
कुछ अपवादों को छोड़कर फल, सब्जियां साक , मेवा और देशी गाय का दूध सात्विक आहार है।
भारत में आसुरी प्रकृति वालों की बहुत वृद्धि हुई है।राष्ट्र भक्तों को चाहिए कि वह दैवी प्रकृति के मनुष्य की वृद्धि का प्रयास करें।
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