अपने(आत्मा) को जानने का उपाय ➡ब्रह्मनिष्ठ से सुनें ➡ मनन करें ➡अंतर्मुखी बुद्धि दृष्टि से निश्चय करें। भगवान की सत्ता व नामजप में अडिग विश्वास तथा पाने की आकुलता होनी चाहिए। वे स्वयं प्रकट हो जाते हैं ,ढूंढना नहीं पड़ता।
Monday, June 26, 2023
Sunday, June 4, 2023
भूमिका
तीन पोस्टों द्वारा वेद परिचय-3
वेद सम्मत ज्ञान-सार:- ब्रह्म सच्चिदानंद है।"सत्" है अविनाशी,"चित्" है स्वयं प्रकाश और "आनंद" है उसका स्वरूप।ब्रह्म का अंश होने के नाते,सत्ता, चित्ता और आनंद जीव की स्वाभाविक मांग है। मानव इन तीनों को उन स्थानों पर ढूंढ रहा है,जहां वे है नहीं।"सत्ता" बनाए रखने के लिए देह सहित परिवर्तनशील प्रकृति को यथावत बनाए रखना चाहता है।"चित्ता" (ज्ञान) के लिए अनिर्वचनीय माया की जानकारी जुटाकर,अपनी ज्ञान पिपासा को तृप्त करने का असफल प्रयास करता है।"आनंद" के लिए इंद्रियों से तादात्म्य कर विषय आनंद द्वारा अनंत वासनाओं को तृप्त करने के असंभव प्रयास में लगा है।अस्तु जीव जब तक देह रूपी आवरण को अपना स्वरूप मानता है,तब तक उसे "मृत्यु" भय छूता है "अज्ञान" रहता है और "दुख" रहता है।
आवरण भंग होने पर यह सब समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।भागवत 2.9.35 में बताई गई अन्वय -व्यतिरेक की युक्ति से आवरण भंग हो जाता है।
अनादि प्रकृति और पुरुष के संयोग से उत्पन्न नादयुक्त( कॉस्मिक एनर्जी) ही शक्तिरूप से समष्टि और व्यष्टि में व्याप्त है,जिससे सृष्टि के सब क्रियाकलाप चल रहे हैं।उन सबको वैसे ही चलते रहना है,केवल स्वयं देह से तादात्म्य छोड़कर,ब्रह्म से युक्त होकर,सत्ता-चिता-आनंद की पिपासा मिटा लेनी है।यही जीवन की सफलता है|