Thursday, April 2, 2020

शिवतत्व


शिवरात्रि की महिमा


शिवरात्रि के दिन शिव पूजन का महत्व शिव पुराण में विस्तार से दिया है। उसके अनुसार श्री ब्रह्मा जी व विष्णु जी के बीच उत्पन्न भ्रम को मिटाने एवं उन्हें परम सत्य का स्मरण दिलाने के लिए उनके सन्मुख अनंत विशाल तेजोमय लिंग प्रकट हुआ ।उसका आदि अंत वे दोनों नहीं जान सके ।तब शिव जी वहां प्रकट हुए और उन दोनों को परम तत्व का बोध कराया ।शिव जी ने मनुष्यो के कल्याण के लिए उस दिव्य लिंग को अरुणाचल पर्वत के रूप में परिवर्तित कर दिया ; तथा उस दिन शिव पूजा करने से विशेष लाभ होने का वरदान दे दिया ।वही दिन शिवरात्रि है ।अरुणाचल पर्वत स्वयंभू शिवलिंग रूप है ।वह महर्षि रमण की तपस्थली के रूप में प्रसिद्ध है ।


शिव तत्व से हम कैसे जुड़े हुए हैं?


हम ईश्वर के अंश किस श्रंखला द्वारा उनसे संबद्ध है ?शिवजी उस श्रंखला की कौन सी कड़ी हैं ?इन सब प्रश्नों के उत्तर अपने सहित, समष्टि व्याप्त चेतन तत्व पर विचार करने से मिल जाते हैं ।एक चेतन तो नित्य शुद्ध बुद्ध मुक्त है ; जो परम ब्रम्ह से अभिन्न है ।उसका संयोग होता है त्रिगुणात्मिका माया के साथ ।दोनों का संवित शिव तत्व है ।इस संवित से इस स्फुरित होने वाला प्रतिबिंब ही, चराचर जगत की आत्मा है। इस आत्मा का,लिंग शरीरों से,परिवर्तित प्रतिबिंब ही व्यष्टि जीव है ।अतः स्वरूप स्थिति की लौटानी यात्रा में शिवतत्त्व को लांघ कर नहीं पहुंचा जा सकता ।अवतारी श्री राम जी ने इस तथ्य को स्पष्ट कर दिया है। यथा :-

औरउ एक गुप्त मत सबय कहां कर जोरी ।
शंकर भजन बिना नर भगति न पावै मोरि।।    

(मानस 7.45 )

 अस्तु कम से कम शिवरात्रि के दिन विधिवत शिव पूजन करना चाहिए ।





शिवलिंग रहस्य


अर्घा में स्थापित शिवलिंग क्या है ?इस में हम किस तत्व की आराधना करते हैं ?गीता जी के मंत्र 14.3 में भगवान कृष्ण ने स्पष्ट किया कि" मेरी महत् ब्रह्मरूपा प्रकृति संपूर्ण भूतों के गर्भाधान का स्थान है ,और मैं उस योनि में चेतन रूप बीज स्थापित करता हूं ।उस जड़-चेतन के संयोग से,सब भूतों की उत्पत्ति होती है ।"इस मंत्र के आशय का मूर्तिरुप(चित्र) ही अर्घा में स्थापित शिवलिंग है ।स्पष्ट है-कि समस्त मूलप्रकृति तत्व ही अर्घा है,और चेतन पुरुष तत्व(चिति शक्ति) लिंग है ।इन दोनों के सम्मिलन से सर्ग एवं विसर्ग सृष्टि का विस्तार होता है। जिससे हम सब उत्पन्न हुए हैं,और बराबर जिसके आश्रित हैं, उसी तत्व का प्रतीक चिन्ह अर्घा -शिवलिंग की मूर्ति है ।उसके प्रति कृतज्ञ भाव प्रगट करने के लिए हम सब उसकी पूजा करते हैं । कुछ पश्चात सभ्यता से प्रभावित लोग अर्घा- शिवलिंग पर मांस- चर्म वेष्टित योनि लिंग को अध्यारोपित करके ,उसे अश्लील बताते हैं ।यह महापाप है। ऐसे लोग अनंत -विशाल ,सूक्ष्म और सर्वव्यापक शिव- तत्व का विवेक करने की क्षमता नहीं रखते ।वह साधना ,साक्षात्कार विहीन, विद्या-व्यसनी एवं ग्रंथ -लंपट हैं।  उनकी उपेक्षा करके शास्त्र सम्मत शिव उपासना करते रहना चाहिए ।













No comments:

Post a Comment

Thank you for taking the time out to read this blog. If you liked it, share and subscribe.