मानव जन्म की दुर्लभता तथा सार्थकता
बड़े भाग मानुष तन पावा।
सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा।।
कबहुँक करि करुणा नर देही।
देत ईस विनु हेतु सनेही।।
नर तनु भव बारिधि को बेरो।
सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो।।
कर्णधार सद्गुरु दृढ नावा।
दुर्लभ साज सुलभ करि पावा।।
-मानस 7.43,44
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