परमलक्ष्य-मार्ग का चुनाव
ज्ञानयोग - अध्यात्म क्षेत्र में अपने को जानना ही सबसे कठिन,किंतु अनिवार्य आवश्यकता है। अपने को जाने बिना,मान्यता के आधार पर, कुछ स्वीकार करते रहने से,मिथ्या अभिमान में जीव बंधता रहता है।अपने को ब्रह्म भी मान लिया जाए, तो सत्य होते हुए भी, वह मिथ्या अभिमान ही होगा।
कर्मयोग - की साधना तुलनात्मक दृष्टि से सरल है ।प्राप्त परिस्थितियों के अनुसार,शास्त्र निर्धारित स्वकर्तव्य को पूरी क्षमता और कुशलता से करना है,और किसी से कुछ अपेक्षा नहीं करनी है।इतने से ही,कर्मयोग सिद्ध हो जाएगा और जीवन आनंदमय हो उठेगा।
भक्तियोग - अलौकिक साधना है, जो भगवान के बल पर संपादित होती है।एक बार भगवान को अपना तथा अपने को भगवान का मानकर,सर्वभावेन भगवान को समर्पित हो जाए,तो भक्तियोग प्रारंभ हो जाता है। सर्वरूप विराट भगवान की सेवा चलते रहने पर,भगवान की कृपा से अपरोक्षानुभूति और परा भक्ति की प्राप्ति भी हो जाती है।
किसी एक मार्ग का चुनाव करने के लिए आप स्वतंत्र हैं।
No comments:
Post a Comment
Thank you for taking the time out to read this blog. If you liked it, share and subscribe.