लिंग शरीरधारी जीव प्रारब्धवश लोक-लोकांतर में,यात्री की भांति भ्रमण करते हुए, विभिन्न चोला धारण करता है ।
जब शरणागत जीव लिंग शरीर से तादात्म्य छोड़कर आत्मा में प्रवेश करता है,तब लिंग शरीर के अवयव प्रकृति में लय कर जाते हैं।
जीव संसार चक्र से मुक्त हो आनंदित हो उठता है।
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