कर्म करते समय वस्तु, व्यक्ति तथा ईश्वर तीनों का समन्वय बनाए रखना है।
ईश्वर को देखने में शेष दो का त्याग, तथा वस्तु और व्यक्ति को देखने में ईश्वर का परित्याग न कर बैठें।
जैसा अधिकांश लोग कर रहे हैं, अतः दुखी हैं।
जीने की इस कला का नाम विज्ञान सहित ज्ञान (प्रकृति पुरुष सहित तत्वज्ञान) है।
इसे श्री गीता जी के अध्याय 7 व 9 में भली-भांति समझाया गया है। विषय अत्यंत जरूरी है।
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